तिनका
हजारों नाम रक्खे गए हैं
मेरे यहाँ पर ... भले बुरे
जबकि मैं बिलकुल बेक़सूर हूँ
जितना भी मैं उलझी...
उलझती ही गयी..
एक दिन तोड़ी जंजीरें ...
काटी रस्सियाँ ...
खोले लंगर ...
अब बन गयी हूँ
सागर में तिनका ...
लहरों से हो गयी है दोस्ती...
वो जहाँ चाहती हैं ...
ले जाती हैं...
कभी इस पार
कभी उस पार --------
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