Manzilein
जब हम चले,
उठा कर कारवां अपना
अनजानी सड़क पे
लिए मंजिल का सपना
रास्ते में वक़्त ने
कहीं कर लिया बंद
वक़्त में खो गयी
जीवन की सुगंध
कर लीं सारी कोशिशें
लकीरों के साथ भी
नहीं मिली वो मंज़िलें
जो रास्तों के साथ थीं
दूर कहीं हंसती रहीं वो
कह के, थोडा और चल
हमने कहा के अब नहीं
अब हमने है समेट ली
हर साँस भी और आस भी ...!!
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